सुबह हुई। अलार्म बजा। उठी। मुंह धोया। और, रोज़ाना की तरह टीवी ऑन किया। मुंबई की ख़बर देखकर ही सोयी थी। लेकिन, ये नहीं सोचा था कि वो सुबह कुछ यूँ हो जाएगी। मुंबई में रह रही मेरी दोस्त को फोन घुमाया, उसकी खैर-ख़बर ली। वो बीएसई में काम करती है। ठीक थी वो। फिर टीवी का वॉल्यूम हाई करके ऑफ़िस की तैयारी करने लगी। पूरे एक घंटे तक ये सब देखने के बाद ख्याल आया आज तो मध्यप्रदेश में चुनाव है। फिर लगा क्यों वोट दे। इस सब के लिए। ऐसी घटनाओं के लिए चुनें सरकार। हमेशा की तरह उलझन के वक़्त पापा की याद आ गई। फोन लगाया। ये सोचकर कि बोलूंगी पापा अब भी आप वोट देने जाओगें क्या... ये सरकारें क्या कर रही हैं हमारे लिए। हम तो यूँ ही मरते रहेगें।
फोन मम्मी ने उठाया।
मैंने पूछा वोट डालने जा रहे हो आप लोग...
मम्मी ने कहा - हाँ अब जाएगें। बस थोड़ी देर में।
मैंने पूछा - टीवी पर देखा मुंबई का हाल...
मम्मी ने कहा - हाँ देख ही रहे हैं।
मैंने पूछा - फिर भी वोट डालने जा रहे हो...
मम्मी ने हंसते हुए बड़ी सरलता से कहा - हर अच्छी और बुरी घटना के ज़िम्मेदार हम ही तो हैं। आखिर ये लोकतंत्र है। हमने ही चुना इन लोगों को, हम में से ही एक हैं ये नेता और वो पुलिसवाले और वहाँ फंसे लोग। वोट न देकर एक और गलती तो नहीं कर सकते हैं। अपनी ज़िम्मेदारी से यूँ कैसे मुंह मोड़ ले बेटा...
मैं कुछ नहीं बोल पाई...
फोन मम्मी ने उठाया।
मैंने पूछा वोट डालने जा रहे हो आप लोग...
मम्मी ने कहा - हाँ अब जाएगें। बस थोड़ी देर में।
मैंने पूछा - टीवी पर देखा मुंबई का हाल...
मम्मी ने कहा - हाँ देख ही रहे हैं।
मैंने पूछा - फिर भी वोट डालने जा रहे हो...
मम्मी ने हंसते हुए बड़ी सरलता से कहा - हर अच्छी और बुरी घटना के ज़िम्मेदार हम ही तो हैं। आखिर ये लोकतंत्र है। हमने ही चुना इन लोगों को, हम में से ही एक हैं ये नेता और वो पुलिसवाले और वहाँ फंसे लोग। वोट न देकर एक और गलती तो नहीं कर सकते हैं। अपनी ज़िम्मेदारी से यूँ कैसे मुंह मोड़ ले बेटा...
मैं कुछ नहीं बोल पाई...
4 comments:
सही है... है तो ये लोकतंत्र ही जहां तंत्र तो है लेिकन आम आदमी के विरुद्ध। जनता जैसे आए दिन इस तरह के विस्फोट झेलने के लिए अभिशप्त हो गई है। कुछ दिन भी नही बीतते कि इस तरह के हादसों की खबरें अंदर तक हिला देती हैं....हर बार दिल चीखता है कि बस, अब और नहीं।
बात तो सही है
आईये हम सब मिलकर विलाप करें
बिलकुल सच कहा, हम ही जिम्मेदार हैं, ट्रैफ़िक लाईट पर पचास-पचास रुपये की रिश्वत देने वाले हम कीड़े, इसी तरह की मौत के हकदार हैं, देश बनता है चरित्र से, गिरे हुए भ्रष्ट लोग देश नहीं बनाते…
प्रणाम करता हूं आपकी माताजी को,काश वोट का महत्व देश का हर नागरिक उतना समझ पाता।
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