कुछ दिनों से जागो ग्राहक जागो के विज्ञापन टीवी और रेडियो पर लगातार दिखाई और सुनाई दे रहे हैं। जिसमें ग्राहकों को उनके अधिकारों और दुकानदारों की मनमानी से निपटने के तरीक़ें बताए जा रहे हैं। उचित मूल्य, सही वजन, वस्तु की गुणवत्ता। सभी को लेकर ग्राहकों को सचेत किया जा रहा है। कुछ विज्ञापन ऐसे भी है जो भ्रामक विज्ञापनों को लक्ष्य करके बनाएं गए हैं। जैसे कि बीमारियों का शर्तिया इलाज, दो में गोरे होना और तीन दिन में दुबले होना। ग्राहकों को जगाने की ये एक सार्थक पहल हो सकती है।
इन विज्ञापनों के ज़रिए लोगों को एक ग्राहक के रूप में उनके अधिकारों की जानकारी मिल रही हैं। लेकिन, अगर महज इन विज्ञापनों से ही बदलाव आ जाता तो बात ही क्या होती। अपने आसपास के लोगों को देखकर तो यही लगता है कि इन विज्ञापनों का असर आम जनता पर कुछ ख़ास असर नहीं हो रहा है। दिल्ली में टोन्ड दूध के आधे लीटर के पैकेट की क़ीमत 10.50 पैसे है। लेकिन, जब दुकान पर खरीदने जाओ तो दुकानदार का सवाल होता है - 13 वाला या फिर 11 वाला। जब कहो कि 10.50 वाला तो वो भौंहें चढाकर देखता है। कहता है 50 पैसे नहीं है। या तो चॉकलेट थमा देता है या देता ही नहीं है। एक बार इस बात पर एक दुकानदार से बहस हुई कि सरकार ने तो 50 पैसे बंद नहीं किए है तो तुम रखते क्यों नहीं हो। वो बोला अब क्या 50 पैसे के लिए क्यों मरते हो। मैंने कहा कि तुम भी को नहीं छोड़ते हो। मेरे पास हमेशा 50 पैसे के सिक्के रहते हैं। ये हालात सिर्फ़ छोटे दुकारदारों का नहीं बल्कि रिलायन्स जैसे बड़े ब्रान्ड का भी है। यहाँ तो 49.50 की खरीददारी को 50 रुपए की कह दिया जाता है। ये बात मैंने हमेशा देखी है कि ऐसे मौक़े पर लोग कभी बिल पर अमाऊन्ट नहीं देखते हैं। ये बात बहुत छोटी लग सकती है। लेकिन, ध्यान देने योग्य ज़रूर है। ग्राहकों को जगाने के लिए ऐसा ही एक विज्ञापन आता है जिसमें बताया जाता है कि पैकेट पर ये ज़रूर देखें कि उसका वज़न क्या है। लेकिन, कोई ये काम नहीं करता हैं। कई कंपनियाँ ये काम कर रही हैं कि वज़न कम करती जा रही है और दाम वही। हमें लगता है कि देखो दाम नहीं बढ़ रहे है। ऐसा ही एक विज्ञापन है जो ग्राहकों को गोरे होने और पतले होने और भाग्य चमकाने वाले विज्ञापनों से सचेत करता है। बावजूद इसके सभी प्राइम चैनलों पर ऐसे प्रोडक्ट्स के विज्ञापन 15 से 20 मिनिट तक आते हैं। लोगों को उसमें बताया जाता है कि इस प्रोडक्ट से आपका भाग्य बदल जाएगा। फ़ेयर एण्ड लवली जैसे और दिल की सुरक्षा करने वाले खाद्य तेलों जैसे विज्ञापन भी इसी लिस्ट में शामिल किए जा सकते हैं। शायद ज़रूरत है एक ऐसी गर्वनिंग अथोर्रिटी की जो इन विज्ञापनों पर भी लगाम कस सकें। ग्राहकों को जगाने वाले इन विज्ञापनों को भी और ज़्यादा आर्कषक बनाने की ज़रूरत हैं। साथ ही ज़रूरत है हमें इन्हें ध्यान से देखने की और इन बातों को समझकर अपने जीवन में उतारने की, न की जब ये विज्ञापन आए तब चैनल बदलने की। एक बार सोचकर देखिए कि 50 पैसे के हिसाब से आपने अब तक कितने रुपए केवल दूधवाले के ही नाम कर दिए हैं।
1 comment:
यह पब्लिक है सब जानती है!
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