16 नवंबर प्रेस दिवस के रूप में मनाया जाता है, ये मुझे तब पता लगा जब मुझे उसे कवर करने के लिए कहा गया। दिल्ली के विज्ञान भवन में हुए इस कार्यक्रम में राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने शिरकत की। ये साल प्रेस दिवस का 42वाँ साल था। इस बार का विषय था - महिला और मीडिया। समारोह के दौरान कई फ़ेक्ट बताएँ गए जैसे कि मीडिया में फ़िल वक़्त महज 18 फ़ीसदी (तक़रीबन) महिलाएँ काम कर रही हैं। बात हुई मीडिया में काम कर रही महिलाओं की सुरक्षा की। सौम्या विश्वनाथन की। मीडिया में महिलाओं की प्रदर्शन की। बालिका वधू की। और भी कई चीज़ों की। कार्यक्रम के ख़त्म होने के बाद कई बुज़ुर्ग पत्रकारों और कई मीडिया छात्र हमारे पास आएँ और हमें बधाई देने लगे। सभी का कहना था कि रिपोर्टर और कैमरापर्सन दोनों लड़कियाँ, देखकर अच्छा लगा। ख़ासकर मेरी कैमरापर्सन। वो जिस तरह हॉल में इधर से उधर कैमरा लेकर घूमते हुए शूट कर रही थी मुझे भी बहुत अच्छा लग रहा था। जो कैमरा हम इस्तेमाल करते हैं, वो डॉक्यूमेन्ट्री कैमरा होता है जिसका वज़न तक़रीबन 6 से 7 किलो होता है। उस कैमरे को कंधे पर लेकर शूट करना सच में बड़ी बात है। महिला और मीडिया पर हुए इस कार्यक्रम के ज़रिए एक तरह से महिलाओं की मीडिया में भूमिका को त्यौहार से की तरह मनाया गया। लेकिन, मेरे कई पत्रकार साथी मेरे सतह ये नहीं जानते कि थे कि 16 नवंबर प्रेस दिवस होता है, तो ये जानना कि इस बार का विषय क्या है ये तो दूर की बात थी।
लेकिन, एक बात जो इस दिन की हमेशा याद रही वो थी मेरे एक साथी की सोच - यार तुम लड़कियाँ हर जगह स्पेशल बनने में क्यों लगी रहती हो। अब प्रेस दिवस भी तो वो भी तुम्हारा स्पेशल... गज़ब है।
1 comment:
अगर महिलाओं की प्रखर भूमिका किसी कार्यक्रम को स्पेशल बनती है तो इसका क्रेडिट तो उन्हें दिया ही जाना चाहिए. उनके द्वारा की गई आलोचना फिजूल है जिन्हें अपने प्रोफेशन से जुड़े दिन के बारे में ही मालूम नहीं.
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