भोपाल जिसे याद करने की कई वजह है मेरे पास। भारत भवन, बड़ी झील, शहर की हरियाली, खाली सड़कें, पुराने भोपाल की रौनक और.., और भी बहुत कुछ। लेकिन, मेरे लिए सबसे ज़्यादा मायनें रखता है भारत भवन। और, इन्हीं यादों को ताज़ा कर दिया "एक विवाह ऐसा भी" ने। ये फ़िल्म मैंने कल ही देखी। मुझे नहीं पता था कि ये फ़िल्म भोपाल को बैकग्राउन्ड में रखकर बनाई गई है। राजश्री की ये फ़िल्म पूरी तरह उसी मूड की जैसी की इससे पहले आई विवाह थी। लेकिन, फिर भी मुझे ये बेहद पसंद आई। वजह सिर्फ़ एक - "भोपाल शहर"। वही बड़ी झील, पुराने भोपाल की गलियाँ और भारत भवन। मैं पूर्णिया से ही रंगमंच से जुड़ा हुआ था। भोपाल आकर ये जुड़ाव और भी मज़बूत होता चला गया। भोपाल एक ऐसा शहर जिसकी आबो हवा रंगमंच और रंगकर्मियों के लिए सबसे ज़्यादा अनुकूल लगती है। जहाँ इससे जुड़ा कुछ न कुछ हमेशा होता ही रहता है इस झीलों की नगरी में। माखनलाल में अपनी पढ़ाई के दौरान मैंने पत्रकारिता से ज़्यादा रंगमंच को अपनी रगों में बसा लिया था। अकेले रहने की आदत ने और ज़्यादा मुझे इसके क़रीब कर दिया। या तो नाटकों की रिहर्सल में व्यस्त रहता था या किसी नाटक फ़ेस्टीवल को देखने में।
भोपाल में भारत भवन के अंतरंग और बहिरंग को देख मन मचल गया। लगा कि बस अभी ही मैं वहाँ पहुंच जाऊँ। हबीबगंज स्टेशन, वो जगह जहाँ से मैंने पहली बार इस शहर में क़दम रखा था और फिर न जाने कितनी बार में उस स्टेशन पर गया। कभी ख़ुद कही जाने के लिए, कभी किसी साथी को छोड़ने के लिए, तो कभी बस यूँ अकेले बैठने के लिए। रेल्वे स्टेशन इतने शांत भी हो सकते हैं, सुकून दे सकते हैं, ये मुझे हबीबगंज पर आकर पता चला।
फ़िल्म ने मेरी ज़िंदगी के वो दो साल एक बार फिर मेरी आँखों के सामने फ़ास्ट फ़ावर्ड में घुमा दिए। फ़िल्म देखकर लगा कि ऐसी फ़िल्मों की ज़रूरत है जो ऐसे सुन्दर शहरों और उनकी तहज़ीब से लोगों को रू-ब-रू करवा सकें। ऐसी फ़िल्में जो सिर्फ़ महानगरों में रहनेवालों या एक दम सुदूर गांवों में रहनेवालों को ही नहीं बल्कि भोपाल जैसे शहरों में रहनेवालों की ज़िंदगी भी चित्रित करें। अगर आप भी कभी भोपाल में रहे हैं या फिर उसे जानना चाहते हैं। तो ये फ़िल्म ज़रूर देखें।
6 comments:
आपके ब्लॉग पर आने के बाद ही पता चला क़ी ऐसी कोई फिल्म भी बनी है. हम ज़रूर देखेंगे. आभार.
http://mallar.wordpress.com
भोपाल की याद दिला कर आँखें भिगो दी भाईसाहेब, हबीबगंज रेलवे स्टेशन पर आपने पहला कदम रखा । मैं अक्सर वहां से विदा होता हूँ आपने मेरे शहर की जो तारीफ की है वो वाकई इसका हक़दार है फ़िर भी आपको बहुत बहुत धन्यवाद् ।
सच कहा ...वाकई भोपाल कभी यादों से नही जायेगा ...... भोपाल से दूर रह कर लगता है कुछ अधूरा सा है....इतनी सांस्कृतिक गतिविधियाँ शायद किसी और शहर में नही होती होंगी ....
मैं भी माखनलाल का ही छात्र हूँ अभी जून में ही पढ़कर निकला हूँ और फिलहाल जी न्यूज़ में हूँ
www.taazahavaa.blogspot.com
www.cavssanchar.blogspot.com
जब से आप से बात हो रही है ... आपने कभी बताया नही कि आप भोपाल कब आये, कब चले गये...
फिल्म के बारे मे तो जानकारी ही नही थी. आपने अच्छा काम किया है. धन्यवाद. जारी रहे...
अनिल जी , भोपाल में मै करीब तीन साल रहा. और इस दौरान ये शहर मुझसे और मै इस शहर से इस कदर जुड़ गया की...
भारत भवन, रबिन्द्र भवन, रोशनपुरा चौराहा, बड़ी झील..और न जाने क्या क्या.. यादों का दायरा बहुत बड़ा होता है.
अनिल जी , भोपाल में मै करीब तीन साल रहा. और इस दौरान ये शहर मुझसे और मै इस शहर से इस कदर जुड़ गया की...
भारत भवन, रबिन्द्र भवन, रोशनपुरा चौराहा, बड़ी झील..और न जाने क्या क्या.. यादों का दायरा बहुत बड़ा होता है.
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