Saturday, October 11, 2008

गालियाँ: लोकप्रियता बढ़ाने का सरल और आसान तरीक़ा

जिस तरह से टीवी चैनलों की टीआरपी होती है, उसी तरह आजकल लगने लगा है कि इंसानों और उनके कामों के लिए भी रेटिंग सिस्टम होना ज़रूरी है। कई बार मुझे लगा है कि अपनी लोकप्रियता को मापने के दो तरीक़ें बेहतरीन हो सकते हैं।
पहला तरीक़ा - जन्मदिन पर आनेवाले फ़ोन कॉल्स का ब्यौरा। कितने लोगों ने फ़ोन किया, कितने ऐसे थे जिनसे यूँ तो बात नहीं होती हैं लेकिन आज उनका भी फ़ोन आया। इसके साथ ही एसएमएस की गिनती और मेल बॉक्स में आए बधाई संदेश। इनके ज़रिए आप कितने मशहूर है, जाना जा सकता हैं। दूसरा तरीक़ा है गिनती उन लोगों कि जो कि आपको गालियाँ देते हो या आपसे चिढ़ते हो। इसका पता लगाना भी आसान है। आपकी तरक्की से जलकर या आपकी गलती पर खुश होने वाले ऐसे लोग ये खुशी कहीं न कहीं तो ज़ाहिर कर ही देते हैं। और, उन्हें आप तक पहुंचाते हैं वो दोस्त जो आपके शुभचिंतक होते है और आपको सजग रखना चाहते हैं (या फिर आपके मजे लेना चाहते हैं)। इनके ज़रिए पता लग सकता हैं कि दुश्मनों के बीच आपकी रेटिंग कैसी हैं। तो इन दोनों आंकड़ों से मिलकर बन सकती है - किसी व्यक्ति विशेष की लोकप्रियता की रेटिंग। जब ये काम पूरा हो जाए तो अगला काम होता है इस लोकप्रियता को बढ़ाना। अगर किसी भी व्यक्ति को लगे कि उसकी लोकप्रियता कम है और उसकी महत्वकांक्षा उसे बार-बार कहे - कि इसे बढ़ाओ यार क्या यूँ ही हाथ पर हाथ धरे बैठे हो। तो कुछ टिप्स उसके भी लिए हैं - पहला तो ये कि अच्छे कामों के ज़रिए लोकप्रियता बहुत धीरे बढ़ेगी, ये बहुत मेहनत का काम है और नतीजें मिलने में वक़्त भी लगता है। वो होता है न कि भैया 25 साल तक सरकारी नौकरी की कभी रिश्वत नहीं ली। तो अच्छा वाला नाम हो गया, लेकिन फिर बस नाम ही होगा पैसा तो दूर-दूर तक नज़र नहीं आएगा। फिर दबे मुंह कुछ गालियाँ भी मिल जाएंगी कि साला इतने साल तक फला ऑफ़िस में बाबू रहा लेकिन, एक फाईल तक पास नहीं करवाई। तो ये तरीक़ा आज के हिसाब से कुछ ख़ास सही नहीं लगता।


इसलिए, अच्छे और सच्चे कामों के ज़रिए रेटिंग बढ़ाने की बात दिमाग से निकाल दे। दूसरा तरीक़ा है गालियाँ दे। लेकिन, सीधे नहीं कोई इनडायरेक्ट ज़रिया खोजें। अब ये निर्भर करेगा आपके प्रोफ़ेशन पर। जैसे अगर किसी आईटी कंपनी में काम कर रह हैं, तो साथी के बनाएं साफ़्टवेयर में कमियाँ निकाले और बॉस के साथ पूरे ऑफ़िस को मेल करें कि मैं तो कंपनी की बेहतरी में चाहता हूँ कि ये गलतियाँ ठीककर दी जाए। अब टेवलप करनेवाला अलग-अलग जगह जाकर आपको गालियाँ देगा। लोगों को आपका नाम पता चलेगा। ऐसे ही अपने पेशे के हिसाब से तरीक़ें खोजें। और अगर आप मीडिया में है तो बल्ले-बल्ले है। अपने बॉस से बनाकर चलिए और अपने पेपर में पर्दाफ़ाश जैसा कुछ शुरु कर दीजिए और हर बार किसी न किसी सरकारी ऑफ़िस या फिर कंपनी की लगाते रहिए। चैनल में भी यही चलेगा। इससे एक पंत दो काज वाली बात होगी। आपके साथ चैनल की रेटिंग बढ़ेगी। या फिर एक ब्लॉग बना लें और लोगों को सलीकें से बुरा-भला, अंटशंट बोलना शुरु कर दे। कोई धांसू-सा हेडिंग दें और फिर देखिए कैसे रेटिंग बढ़ेगी आपकी। लेकिन, हर बार ख़ुद गालियाँ न दें। कभी किसी और के ज़रिए दिलवाएं तो कभी कोई और जो दे रहा हैं उसको समर्थन दे। इससे फ़ायदा ये होगा कि लोग आपका वैचारिक दिवालियापन भी नहीं जान पाएंगे। अब समर्थन करने में तो केवल इतना कहना होता है न कि हाँ मैं भी यही सोचता हूँ। ख़ुद थोड़े ही कुछ सोचना या लिखना पड़ता हैं।

तो इससे देखिए कितने फ़ायदें हैं - आपकी रेटिंग बढ़ेगी, पैसे मिलेंगे और कोई जान भी नहीं पाएगा कि आपकी तो कोई सोच ही नहीं है। तो बस इतना गांठ बांध ले कि बदनामी में ही भलाई है और गालियों को बेशर्म की तरह अपनाएं क्योंकि यही हैं जो आपकी लोकप्रियता की रेटिंग बढ़ा रही हैं।

5 comments:

Anonymous said...

je bilkul sahi likha hai aapne..... aajkal blogs ki brp ke chakkar me kuch bhi likha ja raha hai... kuch sunaamdhanya bloger to brp girne par kuch bhi post karne ka madda rakhte hai.. badhiya hai lage raho..
verma

Unknown said...

दीप्ति जी बहुत बढिया है आपका नजरिया । चलिये देखतें है क्या फर्क होता है। अच्छा लिखा जी

Anil Pusadkar said...

sahmst hu aapse.

Gyan Darpan said...

में आपसे बिल्कुल सहमत नही हूँ , नकारात्मक कामों से पाई सस्ती लोकप्रियता को में किसी काम की नही मानता |

rajiv said...

Kindly see my comments on link given below.I am also sending original text that is in Chankya font.
-Rajiv Ojha

http://www.inext.co.in/epaper/Default.aspx?edate=10/26/2008&editioncode=4&pageno=16

Text
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