Wednesday, October 1, 2008

तुम तो तुम साला हम भी गए भाड़ में...

सड़क पर खचाखच भीड़ थी। कुछ लोग पैदल, कुछ मोटर साइकिल पर, कुछ रिक्शा में, तो कुछ गाड़ियों में...
तब ही अचानक सड़क पर चलते हुए एक पैदल आदमी और एक मोटर साइकिल चालक में भिड़ंत हो गई। मोटर साइकिलवाला कुछ आगे बढ़कर रुका।
पैदल यात्री बोला - क्या यार देखकर चला करो...
मोटर साइकिल चालक बोला - अरे गलती से लग गया यार...
लगा कि बात यही ख़त्म हुई। लेकिन, बात तो शुरु हुई थी।
पैदल यात्री बोला - तुम तो मारकर भागे जा रहे थे...
मोटर साइकिल चालक ने कहा - मैं कहां भाग रहा था... वैसे भी मैं अगर भागना चाहता तो तुम थोड़े ही रोक पाते...
पैदल यात्री ने कहा - ऐसे कैसे भाग जाते... हमको चुतिया समझे हो क्या... वही पकड़ कर धर देते....

उसके बाद गालियों की बौछार और फिर हाथापाई... आते जाते लोगों को इससे कोई मतलब नहीं सब किनारे से निकले जा रहे थे। कोई देख रहा है एक नज़र तो किसी के लिए ये मायने ही नहीं रखता है।
बात ये कह कर भी ख़त्म की जा सकती थी कि गलती हो गई और जवाब ये मिल सकता था कि कोई बात नहीं होता रहता है। लेकिन, आज के वक़्त में हम ये भूल गए हैं कि सहनशीलता भी कोई चीज़ है। बचपन में ये सीखाया जाता था कि किसी को माफ करना उसके लिए सबसे बड़ी सज़ा हो सकती है, कि मैंने गलती और उसने माफ कर दिया... लेकिन, आज हमारी सहनशीलता इतनी कमज़ोर हो चुकी है कि अगर बस में खिड़की का काँच पिछली सीटवाले ने ज़्यादा खोल दिया तो माँ बहनें बीच में आने लगती हैं। ये असहनशीलता गली मोहल्लों से लेकर देश के मुद्दों तक जारी है। आंतकवाद पर बात करना हो या क्षेत्रवाद पर हम अपने पूर्वाग्रहों की गठरी उठाए सहनशीलता को ताले में बंद करें कूद पड़ते हैं बहस में...
हालात अगर यूँ ही रहे तो एक दिन वो भी आएगा कि दूसरे धर्म को न सहने वाले हम लोग, दूसरी जाति से चिढ़नेवाले हम लोग, अपने पड़ोसी से जलनेवाले हम लोग ख़ुद को भी सहन नहीं कर पाएंगे। अगर कोई गलती हो गई तो सुधारेगे बाद में पहले ख़ुद का ही माथा किसी दीवार में लगाकर फोड़ लेंगे...

1 comment:

Anonymous said...

ACHCHA LIKHA HAI DIPTI JE... BHAGWAAN KARE WO DIN JALDI AAYE JAB LOG APNA HI MATHA FODE...WAHI IN SABKI PARAKASHTHA HOGI AUR EK NAI SHURUAAT.

VERMA