आज सुबह उठी थी इस खुशी के साथ कि आज से देवीजी की पूजा शुरु हो रही है। उठते से ही मैं हमेशा टीवी ऑन कर देती हूँ। मेरी नींद पूरी तरह खुली भी नहीं थी कि टीवी पर देखा एक 4 साल की बच्ची को रोते हुए। वो बोले जा रही थी - पापा उठो, पापा उठो.... मेरी सारी नींद उड़ गई। सर से पांव तक मैं कांप गई। मुझे कुछ समझ नहीं आया कि आखिर ये कहाँ कि न्यूज़ है क्या हुआ है। बस उस बच्ची को देखा और आंसू बह निकले। थोड़ी देर तक जब न्यूज़ देखती रही तो पता लगा कि राजस्थान के मेहरानगढ़ क़िले के चामुन्डा मंदिर में भगदड़ मच गई है और कई लोग मारे गए हैं। उसके बाद से ही मन एकदम ख़राब हो गया। मैंने पूजा नहीं की।
बस एक बार पापा से फोन करके पूछ लिया कि - पापा आप कैसे हो...
7 comments:
aphsos karne k alava kya kar sakte hain kuchh bhee nahin
बहुत मार्मिक तस्वीर दिखायी आपने ........ पता नहीं रातभर देवी के दर्शन की आशा में बैठे उनलोगों की क्या गलती थी कि नवरात्र में उन्हें ऐसी सजा मिली।
हां, सुबह मैंने भी यह खबर एनडीटीवी पर देखी थी, जिसमें यह बच्ची बार-बार अपने पिता के गालों पर हाथ रखती हुई कह रही थी पापा उठो। हमारे लोकतंत्र की इस व्यवस्था (?) में लोग इसी तरह अकेले होते जाते हैं...
दूसरों की पीडा को अनुभव करने की, समानानुभूति की इस भावना कभी करने मत देना । यह पीडा ही सृजन के पौधे को सींचती है ।
बहुत दुखद घटना है । पर लोगों को ऐसी अफवाहों से बचना चाहिए।
अफसोसजनक....दुखद....
अफसोस और गुस्सा दोनों होता है।मंदिर जाने मात्र से भगवान खुश नही होते।खुश होते है तो अच्छे कर्मों से श्रद्धाभाव से कही भी बैठ कर ईश्वर की स्तुती करी जा करती है।बुद्दिजीवियों से अपील चित्र की मार्मिकता को समझे और कई बच्चियों को पापा से अतग होने से बचायें।मोको कहां ढूढे रे बंदे,मैं तो तेरे ही पास रे।
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