ठूंसी हुई बस में लटके हुए लोग...
अपने असंतुलन से संतुलन बनाते लोग अपनी-अपनी बातों में व्यस्त थे...
तभी ड्राइवर ने ज़ोर का ब्रेक मारा और बस में भूंकप आ गया...
लटके हुए लोग एक दूसरे पर गिरने लगे...
तभी एक लड़का चिल्लाया - "मम्मी... मेरा पैर..."
एक आवाज़ आई - "साला, कितने भी बड़े हो जाओ, जब फटती है तो माँ ही याद आती है..."
ठूंसी हुई बस के लटके हुए लोग अचानक हंसने लगे...
अपने असंतुलन से संतुलन बनाते लोग अपनी-अपनी बातों में व्यस्त थे...
तभी ड्राइवर ने ज़ोर का ब्रेक मारा और बस में भूंकप आ गया...
लटके हुए लोग एक दूसरे पर गिरने लगे...
तभी एक लड़का चिल्लाया - "मम्मी... मेरा पैर..."
एक आवाज़ आई - "साला, कितने भी बड़े हो जाओ, जब फटती है तो माँ ही याद आती है..."
ठूंसी हुई बस के लटके हुए लोग अचानक हंसने लगे...
8 comments:
मां की ही याद आनी चाहिये...
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अच्छी कविता है। आखिरी पंक्ति "ठूंसी हुई बस के लटके हुए लोग अचानक हंसने लगे!" न भी हो तो भी पूरी थी।
सही चित्रण
बात तो सही है.
kam shabdo mein hi bahut badi baat kahi aapne.. bahut acha
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I don’t want to love you… but I do....
सही तो है।
हमेशा... और जब माँ दूर हो तो और ज्यादा
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