Monday, September 29, 2008
फिर एक बार...
पंकज रामेन्दू मानव
एक बम फटता है,
कहीं कुछ घटता है
कुछ दिन तक सहमा रहेगा हिंदुस्तान
घबराईये नहीं सब कुछ तो है सामान्य
आतंकवादी हर बार मुंह की खाते हैं
इतनी गतिविधियां चलाते हैं
अंत में हमारे नेता निंदा कर जाते हैं
अब कुछ दिन तक ढूंढा जाएगा समाधान
घबराईये नहीं सब कुछ तो है सामान्य
चंद कटे हुए हाथ पैर हैं,
कुछ लाशें हैं जनाब
इनकी ख़ासियत हैं
ये नहीं देती कोई जवाब
ये नहीं मांगेगी आपसे
अपनी मौत का हिसाब
आखिर ये हैं तो एक आम इंसान
घबराइये नहीं सब कुछ तो है सामान्य
ये जिंदादिली नहीं हमारी मजबूरी है
पेट के लिए निकलना भी ज़रूरी है
हर रोज़ हमारा दिल खुद को समझाता हैं
जिंदा घर पहुंचेगें ये हौसला दिलाता है
हम वो ज़ाहिल नालायक नाकारा है
जिसे इसके अलावा औऱ कुछ नहीं आता है
हम उल्लू के पट्ठे क्या जाने सियासत
हमें तो चाहिये बस सहानुभूति और राहत
फिर तैयार हैं हम बैगेरत आम इंसान
घबराइये नहीं सब कुछ तो है सामान्य
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नज़रिया
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3 comments:
पंकज जी आपने अपनी रचना के माध्यम से सबकुछ बयां कर दिया । पढ़कर अच्छा लगा।
वाह! बहुत सुंदर लिखा है. बधाई.
बहुत सही!! उम्दा रचना!!
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