Friday, September 26, 2008

सत्तू के मारे भईयाजी हमारे...

कल दीप्ति का लेख पढ़ते-पढ़ते मुझे भईयाजी की याद आ गई। भईयाजी मेरे पुराने मित्र है और बहुत ही सज्जन पुरुष है। कुछ ऐसे कि - ना माधो का लेना, ना ऊधो का देना। दिल्ली शहर में ही रहते हैं भईयाजी, यही एक कंपनी में काम करते हैं। उम्र का तकाज़ा कुछ यूँ है कि अब तक शहनाई बज जानी चाहिए थी। लेकिन, भईयाजी आज तक कुंवारे हैं। ज़िद है कि कुछ बन दिखाना है। शांत और शरीफ़ भईयाजी की शराफ़त ही उन्हें ले डूबती हैं। किसी से नाराज़ होने पर भईयाजी लिहाज में कुछ बोल नहीं पाते हैं। कई बार दोस्तों के भद्दे मज़ाकों के केन्द्र में रहे भईयाजी को आज मैंने कभी ऊंची आवाज़ में बोलते भी नहीं सुना है।

अब बात उस वाकये कि जब भईयाजी को गुस्सा आया। बात उन दिनों की है जब भईयाजी दिल्ली में नए-नए आए थे और नौकरी की तलाश में थे। उस वक़्त से ही हम सभी यहाँ रूम किराये पर लेकर रहते हैं। किसी की इतनी औक़ात नहीं कि अकेले फ़्लैट ले सकें। भईयाजी भी अपने कुछ कॉलेज मित्रों के साथ रहते थे। मित्र मंडली ऐसी थी कि निक्कमे से निक्कमा इंसान देखकर शरमा जाए। सभी दिल्ली में नौकरी की तलाश में आए थे। लेकिन, दिनचर्या ऐसी थी कि दिनभर सोना और रात को जागकर छत पर बैठे भविष्य पर गोष्ठियाँ करना। स्ट्रगल के दिनों में भी मित्र पूरी रईसी से रहते थे। हर दिन चिकन मटन की दावतें होती थी। वैसे तो भईयाजी भी खाने-पीने के शौकिन है। लेकिन, फिर भी उन्हें स्ट्रगल के दिनों में यूँ दावतें करना कुछ पसंद नहीं था। इसी बीच एक दिन भईयाजी ने ये तय कर लिया कि वो अब अलग हो जाएगें।
मित्रों ने पूछा - क्या हुआ, हमसे कोई भूल हो गई...
स्वभाव के मुताबिक़ भईयाजी चुप रहे। दिन यूँ ही बीतने लगे। भईयाजी ने नौकरी के साथ रूम की खोज भी शुरु कर दी। तभी एक दिन भईयाजी को पता चला कि मित्र मंडली ने उनके जाने का फ़ायदा उठाने की बेजोड़ तरक़ीब सोची हैं। मित्र मंडली ने महीने की राशन खरीददारी दो दोगुना कर दिया है। जिससे कि भईयाजी की जेब अगले महीने के राशन के लिए भी ढीली कर दी जाए। भईयाजी तम-तमाते हुए मेरे रूम आए। और आते ही गालियों की बौछार शुरु हो गई।
मैंने पूछा - क्या हुआ भईयाजी।
भईयाजी ने व्यथित होकर बात बताई। बात मुझे भी चुभ गई। लेकिन, किया क्या जा सकता है। तब ही भईयाजी का फ़ोन बजा।
सामने से एक मित्र ने कहा - आज तुम जा रहे हो सो आज रूम पर पार्टी होगी और नॉनवेज बनेगा।
भईयाजी ने हां बोलकर फ़ोन रखा और फिर गालियाँ शुरु कर दी। भईयाजी शाम तक मेरे ही रूम पर रहे।
अगले दिन जब मैं उनसे मिला मेरा पहला सवाल था पार्टी के बारे में।
भईयाजी को चिढ़ाते हुए मैंने कहा - कल तो खूब दबाकर खाया होगा आपने। आप तो बड़े शौकिन हैं।
जवाब सुनकर मैं समझ नहीं पाया कि हंसू या दुखी हो जाऊं। हुआ यूँ कि शाम को जब भईयाजी मेरे रूम से अपने रूम पहुंचे तो मित्र बाज़ार तक गए हुए थे। इसी बीच उन्हें वो पर्ची मिल गई जिसमें किराने का सामान लिखा हुआ था। उस पर्ची में लिखा हुआ था 2 किलो सत्तू, 1 किलो सॉस टमाटर का और मिर्ची का।
भईयाजी का पारा चढ़, मन ही मन बुदबुदाने लगे - साला, जब तक हम थे कुछ आया नहीं अब हमारे पैसे से ये बस और फिर गालियाँ ...................
बड़े दिनों बाद, कई अत्याचारों को सह लेने के बाद भईयाजी को आखिरकार गुस्सा आ गया। वो उठे किचन में गए और ढेर सारा सत्तू घोलकर पी गए। तमतमाते हुए छत पर टहलने लगे। मित्र आए और भईयाजी को खाना खाने को नीचे बुलाया। भईयाजी खाने बैठे तो सही लेकिन उनका पेट तो सत्तू से ढूंसा हुआ था। वो चिकन का एक पीस भी ठीक से ना खा पाए। मित्रों ने चिढ़ाया भी कि क्या हमारे ग़म में खाया नहीं जा रहा है। भईयाजी आदत के मुताबिक़ चुपचाप सो गए। ये कहानी सुनते ही मेरी हंसी छूट गई। मैं ख़ूब हंसा। भईयाजी गुस्से में थे लेकिन, मुस्कुरा रहे थे।
मुझसे कहने लगे - आज साला पूरा सॉस पी जाएगें।
मैंने उन्हें समझाया कि ऐसा ना करें नहीं तो दिल की जलन पेट को जला देगी।


आज इस बात को बीते कुछ 1 साल गुज़र गया है। आज भईयाजी अकेले रहते हैं। अपना कमाते, अपना खाते हैं। कई बार हम दोनों ने मिलकर चिकन बनाया है। लेकिन, हर बार खाते वक़्त मैं एक बार उस वाकये को ज़रूर छेड़ देता हूँ। अंत में बस इतना कि वो मित्र आज भी भईयाजी के यहाँ आते जाते रहते हैं। और हर बार उनके जाने के बाद उनके रूम से गालियों की आवाज़ें आने लगती हैं...

4 comments:

anil yadav said...

बेहतरीन .....,....

anil yadav said...
This comment has been removed by the author.
PD said...

बहुत बढिया.. बोले तो एकदम मस्त है आपके भैया जी के दोस्त.. हमारे दोस्तों से मिलते जुलते.. :)

Anonymous said...

hey bhuwan.. mujhe nahi pata tha tumhare itne aache shaunk bhi hai ... well done.. mujhe tumhare bhaiyaji kuch kuch pushkar jaise kage.. bcz ab tak uski bhi shadi ho jani chahiye thi............