लोगो को बघेलखंड में वेलकम करती फिल्म वेलकम टू सज्जनपुर बनाकर श्यामबेनेगल ने साबित कर दिया है कि फिल्म बनाना किसे कहते हैं और अच्छाडायरेक्टर अच्छा ही होता है। सामाजिक मुद्दो पर तंज करती इस फिल्म केज़रिये जहां भारतीय गांवों की वस्तुस्थिति को ख़ूबसूरती से ज़ाहिर किया,वहीं फिल्म ने ये भी बता दिया कि कॉमेडी के लिए फूहड़ता की कोई ज़रूरत नहीं है। सीरियस फिल्म मेकर श्याम बेनेगल अपनी फिल्म से ये बताया किव्यंग्य कॉमेडी से शुरू होता और कहीं अंत में चोट कर जाता कुछ सोचने परमजबूर कर जाता है। अगर किसी क्षेत्रीय भाषा में फिल्म बनाई जाए तो ज़रूरीहोता है भाषा के साथ न्याय, उस जगह की एक अच्छी शोध जो फिल्म में पूरीतरह नज़र आती है। फिल्म मे मुख्य और अहम किरदार में नज़र आने वाले महादेवकी भूमिका में श्रेयस तलपडे ने पूरी तरह न्याय किया है। अन्य किरदारोंमें गांव के छुटभैया नेता बने यशपाल शर्मा, मौसी का किरदार निभाने वालीइला अरुण ऐसी नज़र आती है जैसे वो इसी मिट्टी से उपजी हैं, इससे अलावासबसे ज्यादा आश्चर्यचकित करती हैं अमृता राव।फिल्म की कहानी सिर्फ एक गांव के छोटे छोटे किरदारों के इर्द गिर्द घूमतीहै, जो एक दूसरे से कहीं ना कहीं जुडी हुई है. फिल्म के अहम किरदारमहादेव यानि श्रेयस तलपड़े गांव के चंद पढ़े लिखे लोगों में से हैं जो एकलेखक बनना चाहते हैं और उनकी ये चाहत उन्हे एक लेटर राइटर बना देती है जोगांव के हर छोटे बड़े के लिए पत्र लिखता है, महादेव एक औसत इंसान हैजिसके चरित्र में एक अच्छा इंसान तो है लेकिन वो थोड़ा स्वार्थी भी है।महज़ अठन्नी और दो रू में पत्र लिखने वाला महादेव पैसे ना दे सकने वालोंके लिए मुफ्त में पत्र लिख देता है तो वहीं अपने बचपन के प्यार अमृता रावको पाने के लिए मुंबई गए उसके पति की चिट्ठी में भड़ास निकालता है। फिल्मके एक दृश्य में जब श्रेयस तलपडे उसके पति की चिट्ठी को पढ़ते हैं तो जोभाव उन्होंने अपने चेहरे पर लाए, उसके लिए ये कहना चाहिए कि ये उनके अबतक के फिल्मी करियर का सबसे बेहतरीन दृश्य होगा। इसके अलावा कंपाउंडर कीभूमिका में नजर आए रवि किशन जो एक विधवा से प्यार करने लगते हैं, विधवाविवाह को गांव किस नज़रिये से देखता है ये बहुत ही सटीक तरीके से बतायागया है. ख़ास बात रही फिल्म का अंत जो दर्शकों को एक साथ दो तरह से देखनेको मिलते हैं। एक फिल्मी अंत और एक यथार्थ का अंत।कुल मिलाकर श्याम बेनेगल और फिल्म के किरदारों ने वेलकम टू सज्जनपुर कोपूरी ईमानदारी और शिद्दत के साथ निभाया, अच्छा सिनेमा देखने वालों को येफिल्म बिल्कुल मिस नहीं करनी चाहिए।
6 comments:
"श्यामबेनेगल ने साबित कर दिया है"
श्याम बेनेगल तो अब भारतीय सिनेमा के पितृ पुरुषों में गिने जाते हैं. अब उन्हें कुछ साबित करने की जरूरत है क्या? फ़िल्म जरूर बढ़िया होगी. अवश्य देखेंगे.
हम तो पहले दिन ही वेलकम कर आए थे.. बढ़िया फिल्म है
wo to dekhna hi hai....
देखनी पडेगी..
अच्छी समीक्षा..जरुर देखेंगे.
मुझे भी यह फ़िल्म अच्छी लगी, पर न जाने क्यों श्याम बेनेगल विधवा विवाह पर जो हो रहा है उस के साथ जुड़ गए. दोनों का सुखी जीवन दिखा कर समाज को नई राह दिखानी चाहिए थी.
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