कुछ दिनों पहले की बात है जब एक तक़रीबन 45 साल की महिला ने एक 24-25 के युवक से कहा कि बेटा महिला सीट है उठ जाओ... लड़के ने जवाब दिया अगले स्टॉप पर उठ जाऊंगा तब बैठ जाना। महिला ने कंडक्टर से कहा और कंडक्टर ने युवक को उठने की हिदायत दी। लेकिन, युवक नहीं उठा।
कंडक्टर ने चिल्लाया - ओए मेरे सलमान ख़ान उठ जा भाई...
बस में मौजूद सभई लोग हंसने लगे...
एक महाशय ने आग में घी डालते हुए कहा - अरे सलमान होता तो उठ गया होता, चैक कर लो कोई गड़बड़ तो नहीं...
फिर पूरी बस में हंसी गूंज गई... इतनी बेइज़्ज़ती हो जाने के बाद युवक उठा और बस के एक कोने में तमतमाए चेहरे के साथ खड़ा रहा।
दिल्ली की बसों में सफर करते हुए कुछ 2 साल हो गए है। रोज़ाना एक न एक ऐसा वाकया ज़रूर हो जाता है जो हमेशा के लिए दिमाग में फ़ीड हो जाता है। लेकिन, ये जो मैं लिखने जा रही हूँ वो इसी तरह की हर दिन नहीं होनेवाली घटनाओं का ओल-झोल है।
रोज़ाना मैं मयूर विहार से अपने ऑफ़िस के लिए बस पकड़ती हूँ। थोड़ा उल्टा पड़ता है लेकिन बस में जगह मिल जाए इसलिए हर दिन 1 घंटे की बलि चढ़ जाती है। मेरा ये सफर कुछ एक से सवा घंटे का रहता है। मैं हमेशा कंटक्टर के आगेवाली महिला सीट पर बैठती हूँ। वजह सिर्फ़ इतनी कि वहाँ से लगभग पूरी बस की गतिविधियाँ दिखाई दे जाती हैं। कई बार महिला सीट पर पुरुष बैठे रहते हैं और ताकते रहते हैं कि कही कोई महिला बस में ना चढ़ जाए। महिला सीट पर बैठे इन पुरुषों का दम कुछ यूँ सधा रहता हैं, जैसे किसी बल्लेबाज़ का 99 के स्कोर पर रहता है। एक गलत बॉल और शतक से दूर और एक महिला की बस में एन्ट्री और सीट से दूर। कई बार कुछ पुरुष सीट ना छोड़ने के लिए तरह-तरह के जतन भी करते हैं। किसी महिला को आते देख खिड़की से बाहर देखने लगना या फिर सीट पर सिर झुकाकर सोने का अभिनय या फिर ये कहना की अगले स्टॉप पर ही उतरना है, आम है। कई बार मेरे साथ भी ये हुआ है कि महिला सीट पर बैठे कुछ पुरुष ऐसे सोते हैं कि जन्मों से सोए नहीं थे और आज ही नींद आई है। लेकिन, कुछ महिलाएं ऐसे पुरुषों से निपटना जानती हैं। उन्हें हिला-हिलाकर, चिल्ला-चिल्लाकर तब तक पीछे पड़ी रहती हैं, जब तक कि वो उठ ना जाए। कई बार पुरुष अपने सफेद होते बालों की दुहाई देते हुए ख़ुद को वरिष्ठ और कमज़ोर बताकर बैठे रहने की बात करते हैं, तो कई बार साइड में बैठी महिला का बच्चा गोदी में बिठा लेते हैं कि बैठे रहने दीजिए बच्चा साथ में हैं।
माना जाता है कि महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति उदासीन होती हैं। आवाज़ नहीं उठाती हैं। लेकिन, दिल्ली की बसों में सफर करनेवाली महिलाएं आपको क्या आपके देवों को भी उठा सकती हैं। बस में चढ़ते ही महिलाओं का टारगेट होता है महिला सीट। जहाँ महिला सीट पर किसी पुरुष को देखा पर फायर हो जाती है। जैसे बंदूक से टारगेट सेट कर गोली छोड़ी गई हो... लेकिन, कई बार महिलाओं को मायूसी भी होती है जब सभी महिला सीटें महिलाओं से ही भरी रहती हैं। महिलाओं के मुताबिक़ बस तब तक खाली है जब तक एक भी महिला सीट पर पुरुष विराजमान है।
महिला सीट पर अपना अधिकार जताती ये महिलाएँ कई बार अती कर जाती हैं। विकलांग या वरिष्ठ नागरिक सीट पर भी कुछ ऐसे जमकर बैठ जाती है कि उठने का नाम ना ले। कोई विकलांग या बुज़ुर्ग आकर कह दे कि सीट दे दो तो उनके चेहरे देखने लायक हो जाते हैं। उस वक़्त लड़कियाँ भी वही सारे पैतरें अपनाने लगती हैं जो पुरुष अपनाते हैं। उस वक़्त लगता है कि अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे...
लेकिन, आज का वाकया कुछ उलझाने वाला है। आज मैं ये तय नहीं कर पाई कि क्या सही था, क्या अलग...
एक बुज़ुर्ग एक लड़की पर बिफर पड़े। बुज़ुर्गवार महिला सीट पर आराम से बैठे थे और खिड़की के बाहर के नज़ारे देख रहे थे।
तब ही एक लड़की आई और उसने कहा - ये लेडीज़ सीट है...
बुज़ुर्ग ने चिल्लाया - तो तुम मुझे उठा रही हो... मैं तुमसे उम्र में कितना बड़ा हूँ...
लड़की ने कहा - बड़े हैं तो आगे जाइए और वरिष्ठ नागरिक सीट पर बैठिए...
वो बोले - कोई नहीं देता हैं सीट, जो बैठता वो मुंह फेर लेता हैं।
लड़की ने जवाब दिया - तो आप भी तो वही कर रहे हैं। आप कौन-सी सीट दे रहे हैं...
इसके बाद आस-पास खड़े लोगों ने मामला निपटाते हुए लड़की को खड़े रहने की सलाह दी और मामला शांत हुआ...
लेकिन, तब से मेरे मन में विचार गुत्थम-गुत्था हुए जा रहे हैं। वो लड़की ग़लत तो नहीं कह रही थी। नियम तो यही है कि आप महिला सीट पर तब तक ही बैठ सकते हैं जब तक कि कोई महिला बस में खड़ी ना हो। लेकिन, बुज़ुर्ग को सीट पर बैठने देना संवेदनशील होना होगा। लेकिन, बस में खड़े रहना किसी भी लड़की के लिए आसान नहीं। क्योंकि, कई बार सहयात्रियों के हाथ-पैर ग़लती से लग जाते हैं और कई बार वो जान बूझकर मारे जाते हैं। लेकिन, किसी बुज़ुर्ग का भी इस भीड़ में खड़े रहना दूभर काम है.............
9 comments:
bahut badhiya dipti....
मेरे विचार से तो बुजुर्ग को ही सीट पर बैठ रहने देना ठीक था .आखिर नियम कानून लोगों की भलाई के लिये ही तो बनाये गये है .वैसे नैतिकता का नियम सभी नियमों से बडा है .
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aap ki baat se sahmat hun.mudda bahut hi accha hai per log iss per soche kam hai . hum ko aap ko sabhi ko ye dyan dena chahiye..
मुझे लगता है यदि बुजुर्ग हैं तो मानवता के नाते महिला को अपनी सीट के लिए जिद नहीं करनी चाहिए! यदि कोई और उन्हें जगह नहीं दे रहा है तो क्या हम भी सबकी तरह ही हो जायेंगे? कष्ट तो है पर कभी कभी भुगत लेने में कोई हर्ज नहीं है!
पल्लवी से सहमत हुआ जाता हूँ..!
niyam ki baat karein to ladki sahi thi par bujurg ko apni seat par bane rahne de kar ladki ko bhi baad mein juroor laga hoga ki usne antatah ek nek kaam kiya.
niyam ki baat karein to ladki sahi thi par bujurg ko apni seat par bane rahne de kar ladki ko bhi baad mein juroor laga hoga ki usne antatah ek nek kaam kiya.
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