लेकिन, इस बरसात ने तो वो सब कर दिया जो करोड़ों अरबों रुपए खर्च करने के बावजूद हासिल नहीं हो सका था। यमुना की सफाई के नाम पर सरकारी एजेन्सियों से लेकर स्वयंसेवी संस्थाओं तक न जाने कितनों को और कितना पैसा दिया गया होगा।
लेकिन, यमुना में गंदगी बढ़ती चली गई। यमुना सिमट कर एक नाले में बदल गई। बरसात के मौसम में यमुना की बाढ़ को लेकर काफी शोर-शराबा मचाया गया। जल स्तर ख़तरे के निशान को पार कर गया। किनारे के कुछ इलाकों में पानी भर गया। लोग इतने में ही त्राहि-त्राहि करने लगे। लेकिन, मुझे हक़ीक़त कुछ और ही लगती है। यमुना में इतनी गाद और इतना कचरा जमा हुआ है, जो उसके जलस्तर को अपने आप ही ऊपर कर देता है। दिल्ली और आस-पास के इलाकों में मॉनसून इस बार कुछ मेहरबान रहा। इस मॉनसून से लोगों को गर्मी से तो राहत मिली ही यमुना को भी जैसे एक नई ज़िंदगी मिल गई। अपने बढ़ते पानी और तेज़ रफ़्तार से यमुना ने काफी गंदगी या तो किनारों पर ऊलीच दी या फिर कही दूर बहा ले गई। हालांकि, यमुना अभी पूरी तरह से साफ नहीं हो पाई है, फिर भी उसमें एक ताज़गी ज़रूर नज़र आ रही है।
3 comments:
अच्छा लगा जान कर की जमुना फ़िर अपनी रंगत में लौट आयी है...लेकिन कितने दिन ये रंगत कायम रहेगी ये देखने वाली बात है...मैंने कभी लिखा था:
इक नदी बहती कभी थी जो यहाँ
बस गया इंसां तो नाली हो गयी
नीरज
सही कहा नीरजजी आपने, यमुना ने खुद से जितना हो सका अपनी सफाई की। अब हम इंसानों की बारी है। कही ऐसा न हो कि, कुछ सालों बाद बच्चों की किताबों में ये पढ़ाया जाने लगे कि किस नदी के किनारे दिल्ली बसती थी...
Superb Bhuwan
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