Thursday, August 28, 2008

ये जो है ज़िंदगी...

दिल्ली में जाम लगना अब आम हो चला है। जहाँ पहुंचने में हमें 30 मिनिट लगते हैं, हम मान लेते हैं कि दो घंटे लगेंगे। लेकिन, कुछ दिनों पहले शहर में कुछ राजनैतिक पार्टियों ने विरोध दर्ज करवाने के मक़सद से चक्का जाम किया था। मैं दिल्ली के बार्डर इलाक़े में रहती हूँ, सो इसका प्रभाव कुछ ज़्यादा ही झेलने को मिल जाता है। ये कहानी जैसी कुछ जो आपके सामने हैं, वो मैंने उस दिन बस स्टॉप पर बैठे-बैठे लिखी थी। उस दिन मैं तीन घंटे बस स्टॉप पर बैठी रही थी और आसपास हो रही घटना को, और लोगों को मूक दर्शक बनें देख रही थी।
जाम लगाने वाले -
एक दिन पहले
कल हमें चक्का जाम करना है। ऑर्डर आया है। कुछ लड़कों के साथ पहुंच जाना क्रॉसिंग पर, वही पर रोक लेगें हम गाड़ियाँ। ये जींस और टी शर्ट मत पहन कर आना। पिछली बार जो कुर्ता दिया था ना वही पहनकर आना, धो लेना आज उसे। तिलक लगाना मत भूलना और बाक़ी सब मैं लेते आऊंगा। अच्छा अब जाओ। अरे हाँ वो हॉकी स्टीक्स लेते आना, जो पिछले साल स्पोर्टस् डे पर कॉलेज में तुम्हे बांटी गई थी।

उस दिन
हाँ जी सर हम तैयार हैं।
हाँ तो चलो ऊपर से फ़ोन आ गया है। सब जगह 9 बजे से शुरु है, हमें भी तब तक शुरु हो जाना हैं। ये बैनर अपने साथ ले जाना। और नारे वही पुरानेवाले धर्म की रक्षावाले और अपमान नहीं होने देंगे वाले। पुराने बंदों के साथ कुछ नए भी लाए हो ना। उन्हें भी सीखा दो। ऐसे ही तो सीखेगें वो भी।
हाँ जी सर, आए हैं बच्चे। स्मार्ट हैं जल्दी सीख जाएंगे।
अच्छा अब जाओ। ठीक है सर।
अरे सर, आपने ये तो बताया ही कि किसका विरोध करना है। एक बार बता देते तो आसानी होती।
हाँ, हाँ, पूरा तो कुछ पता नहीं हैं लेकिन कुछ धर्म वाला ही मामला हैं। डीटेल में मत फंसो जनरल वाले नारे लगा देना।

शाम को
हाँ सर काम पूरा हो गया। बढ़िया ही रहा सब कुछ। खूब नारे लगाए जी, दो बसें भी जला दी इस बार तो। सबसे ज़्यादा इधर का ही कवर किया है टीवी वालों ने। मज़ा आ गया। बस अब वो पैसे मिल जाते तो।
हाँ हाँ बिल्कुल, हाई कमान भी बहुत खुश। अगला भी दो-चार दिन में होने वाला है तैयार रहना।

रात को
देश की एकता के लिए मरने वाले जाम के दौरान पकड़े बैनर पर बैठे आज कमाएं पैसों से तीन पत्ती खेल रहे हैं.........

आम आदमी
एक दिन पहले
पत्नी - बेटी का बुख़ार कम ही नहीं हो रहा है। डॉक्टर की दवाइयाँ भी ख़त्म हो गई हैं। लगता है कल अस्पताल जाना पड़ेगा। अगर आप भी चलते तो....
पति - नहीं जा सकता। बहुत काम है कल। और कुछ उम्मीद बंधी है कि शायद कुछ बिल क्लीयर हो जाए। राखी पर राहत हो जाएगी।
पत्नी - ठीक है, मैं ही चली जाऊंगी.....

उस दिन
पति के ऑफ़ीस निकलते ही, पत्नि बेटी को लेकर चल पड़ी डॉक्टर के यहाँ। बस स्टॉप पर पहुंच कर पता चला जाम लगा है आज। खड़ी रही इस इंतज़ार में कि बस आएगी और बेटी का इलाज हो जाएगा। एक घंटे बाद बारिश शुरु हो गई भीगने से बचने के लिए एक दुकान की आड़ में वो खड़ी हो गई। दो घंटे बाद पता चला कि आगे वाले मोड़ पर दो बसें जला दी गई हैं। यहाँ बेटी रो-रोकर बेहाल हो रही है। वो वापस घर की ओर चल दी। बेटी की तबीयत ख़राब होती जा रही है। वो परेशान है।

शाम के वक़्त
पति का इंतज़ार कर रही है। सोच रही है कि, आए नहीं अभी तक।
तब ही मोहल्ले का एक लड़का आकर बताता है - जो बस जली थी अंकल भी उसी में थे। वो सरकारी अस्पताल में भर्ती है।
पत्नि भागी। पहुंचने से पहले पति मर चुका है। वो रो भी नहीं पाई कि देखा बेटी बेहोश हो गई। डॉक्टर ने चैक किया तो, बेटी भी अपने पिता के साथ जा चुकी है।

रात को
अस्पताल के मुर्दा घर में अपने पति और बेटी के पास बैठी एक ज़िंदा लाश............

6 comments:

vineeta said...

maarmik lekin satya

Arun Aditya said...

सच को कहने का ये अंदाज प्रभावी है। काश बैनर पर बैठकर तीन पत्ती खेलने वाले भी इसे पढ़-समझ पाते।

Udan Tashtari said...

प्रभावी आलेख!!

Nitish Raj said...

marvellous...oood comperision

Surbhi said...

You made me cry! When will the right-wingers just let us be ourselves. Loved the part - "अरे सर, आपने ये तो बताया ही कि किसका विरोध करना है। एक बार बता देते तो आसानी होती।
हाँ, हाँ, पूरा तो कुछ पता नहीं हैं लेकिन कुछ धर्म वाला ही मामला हैं। डीटेल में मत फंसो जनरल वाले नारे लगा देना।" So true! Refreshed the memories of the recent Mangalore shame too - again the same right-wingers.
You're doing a great service to the society. Keep up the good work!

sanjeev kumar said...

bahut badhiya likha hai aapne ...bahut khoob !!!!