दिल्ली के चौराहों पर जहाँ हर वक़्त ट्रैफ़िक जाम होता है, वहाँ खड़े ट्रैफ़िक पुलिस अधिकारी कहीं गायब हो गए हैं। अगर वो ये पढ़ रहे हो, तो जल्दी ही चौराहों पर लौट आए। यहाँ फंसे यात्रियों का उनकी याद में रो-रोकर बुरा हाल हैं। बस में ठूंसे लोगों ने तो सांस भी लेना बंदकर दिया हैं और लटके लोग चारों तरफ बस आपको ही खोज रहे हैं। जल्दी से जल्दी लौट आओ। अब आपको कोई बुरा-भला नहीं कहेगा, जितना पैसा मांगोगें मिलेगा...
डीटीसी बस की!
तुम यूँ मुझे इतनी जल्दी छोड़कर चली गई? थोड़ा तो और साथ निभाती। आ जाओ जहाँ भी। तुम्हारे बिना मैं रात को आठ बजे ऑफीस से रूम कैसे जाऊंगी? कहाँ चली गई मेरी डीटीसी बस। बस आठ बजे है अभी। आ भी जाओ। इतना भी क्या सितम करती हो, जानती तो हो ना तुम दिल्ली के ऑटो को। वो वहाँ थोड़े ही जाते हैं जहाँ मुझे जाना है, वो तो वहाँ ले जाते हैं जहाँ उन्हें जाना हैं। इससे पहले की मेरी हम्मत टूटे लौट आओ...
1 comment:
aji bahut hi achcha likha hai aapne.
aaapke is vyang ne hmare bhi jakhmo ko ched diya hai.
bahut hi achcha.
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